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कमरे की एक दीवार बन गई हौंसला ...

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  अपने कमरे की कुछ दीवारें हमें हौसला देती रहती हैं ... यह भी कुछ ऐसी ही दीवार है। घर में जब तीन साल तक नौकरी को लेकर खींचतान चल रही थी, तब यह दीवार बताती थीं कि पागल नहीं हो गई हूं, ये बातें सिर्फ किताबी नहीं हैं और किसी इलाज की जरूरत नहीं है। 'पर्सनल इज पॉलिटिकल' यानी व्यक्तिगत जीवन में घट रही घटनाएं सामाजिक राजनीति , सामाजिक संरचना और सोच से प्रेरित हैं। इसलिए किसी इमोशन में आके इस राजनीति का शिकार मत होना। बस यही आगे बढ़ाता गया। मां - बाप आज भी मानते हैं कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना ही गलत होता है और फिर उन्होंने तो पढ़ाई के लिए घर खरीदकर दे दिया था ताकि कोई परेशानी न हो। लड़की को पढ़ना चाहिए था फिर किसी 'बड़े' घर की बहू बनती। तथाकथित ' इज्जतदार' खानदान कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी लड़की रात में दो बजे घर लौटे या स्कूटी से इधर - उधर खबर की फिराक में मारी फिरे। लड़कियों के लिए तो आदर्श जीवन खूब पढ़ना और शादी करना है ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें।  फिर बागियों का क्या हो? रामगंगा में बहा दी जाए, रात में कोई उन्हें नोच कर खा जाए, किसी से उनकी गाड़ी का एक्सिडेंट