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बाप का मारना ....

कई घरों में माँ भी मरती है बच्चे तब भी अनाथ होते हैं । लेकिन बेटी संभाल लेती है ज़िम्मेदारी पढ़ाई छोड़ कर गेहूं बीनने से आचार डालने तक गृहस्थी में माहिर हो जाती है खुद ब खुद । भाई और बाप को खलता है बस उसकी शादी के बाद। पर कुछ समय में एक और लड़की बहू बनकर गृह प्रवेश कर जाती है उनके जीवन में । बाप को कभी नहीं दिखना पड़ता शक्ल से विधुर । पर जब बाप मरते हैं घरों में , बेरंग जीवन की सफेदी माँ से लिपट जाती है उम्र भर के लिए । लड़कियां इस बार भी कैद झेलने को होतीं है बेबस । जल्दी शादी और मोटे दहेज की चिंता में , स्कूल की फीस कहाँ निकल पाती है भाई की कमाई में ......... ॥   माओं को कब दिया होता है हुनर , उनके बाप ने रुपये कमाने का । बिना जेब के कपड़ों का कारण माएँ कहाँ समझ पाएँगी कभी । आदमी के सिधरते ही बेटे के सर मढ़ना होगा उन्हें । बेटे के लिए इसलिए ही बोझ हो जाती है माँ और बहन ....... उसका बचपन भी तो छिनता है अचानक ही , बाप मरते ही छोड़ जाता है जिम्मेदारियों का पहाड़ । पित्रासत्ता नोच देती है खुद लड़के का ही जीवन । अगर बेटियाँ पढ़ें