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सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समलैंगिकता ; विषमलैंगिक पितृसत्तामक समाज से जुड़ाव और अप्राकृतिकता का कारण

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गर्मी की एक दोपहर दसवीं में पढ़ने वाला एक लड़का घर की पहली मंजिल पर बने अपने कमरे को बंद किए बैठा है। स्कूल से आकर बस उसने खाना खाया और जा घुसा अपने कमरे में... रुटीन के मुताबिक आधे-पौने घंटे में उसका दोस्त भी आ जाता है। दोनों खेलते हैं, क्योंकि लू भरी दोपहरी में बाहर निकलने की इजाजत दोनों को नहीं। दूसरी ओर, खाना खाकर घर के सब सदस्य पहुंच चुके हैं अपने-अपने बिस्तर पर। लड़के की मां बड़बड़ाने लगती हैं.. 'दोनों लड़के खाना खाकर आराम भी नहीं करते, बस हर वक्त खेलना।' वह अपनी बड़ी बेटी से कहती हैं- 'जरा जा दोनों लड़कों को डपट आ। ' लड़की जाती है.. कमरे में कुछ एकदम नया सा देखकर घबराहट और गुस्से में नीचे भाग आती है। मां को बताती है कि ऊपर दोनों 'गंदा काम' कर रहे हैं, फिक्र से कहती है कि दोनों भाई बिगड़ गए।  कमरे में बंद दोनों किशोर अब सहम गए हैं.. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा। लड़के का दोस्त उठकर पहले जीने का दरबाजा लगाता है और खुद छत पर भाग जाता है। अब पहली मंजिल पर खड़ा वह लड़का रो रहा है.. अपनी मम्मी को आवाज दे रहा है कि उसका दोस्त मर न जाए। कह रहा है कि दोस्त

मम्मी का दिल्ली सफर..

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छोटे शहर के लोग अक्सर दिल्ली मरीज की दवाई लेने के वास्ते आते हैं। मेरी मम्मी भी कुछ सात-आठ साल पहले मेरी छोटी बहन की दवाई लेने ही दिल्ली आईं थीं, उसके बाद कभी ऐसा मौका नहीं आया कि वो बच्ची ही दुनिया छोड़ गई। 15 दिन पहले जब मैं घर गई तो उन्होंने जिद की कि वो साथ जाएंगी, हालांकि जल्द ही में डायग्नोज हुई डायबिटीज के कारण उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। हम रात में चले, मम्मी के साथ कई साल बाद मैंने कोई सफर किया, पहले नानी और मौसी के घर मम्मी साथ जाना होता था। खैर, लगभग खाली बस में हम दोनों बैठे, रास्ते में टॉयलेट आना कितनी बड़ी समस्या हो सकती है, यह मुझे उस दिन महसूस हुआ। सो रहे कंडक्टर को जगाकर कहीं गाड़ी रुकवाने के लिए कहना, फिर उसका बड़े अहसान और एक बार गुस्सा होकर भी गाड़ी रुकवाना मुझे बहुत गंदा लगा। दूसरी तरफ इस नेचर कॉल के लिए भी मम्मी को शार्मिदगी का अनुभव हो रहा था कि उनके कारण बार बार बस रोकनी पड़ रही है। उनके ऐसे भाव देखना खुद में बड़ी वर्नेवल फीलिंग थी, एक बार मैं बैठे-बैठे रोने भी लगी, हालांकि तब वह दूसरी सीट पर सो रही थीं। ऐसा मेरे साथ पहली बार जब वो मेरे लिए मम्मी नहीं बल्कि कोई

खिड़की

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कितनी जरुरी है खिड़की तुम्हारे लिए? जानना हो तो चांद को न निहारो जरा टहल आओ नीचे और देखो ... खिड़की के बाहर क्या पड़े हैं सिगरेट के खोखे जिन्हें आधा पीकर ही, तुमने छोड़ दिया था ताकि दिखता रहे उस पर नाम महंगी कंपनी का। खिड़की के बाहर क्या पड़े हैं वो गुब्बारे जिन्हें देखकर तुम पुचकारती थीं अपनी न पैदा हो सकी औलादों को..। यह भी देख आओ क्या वो भाव पड़े हैं ग्लानि के जो सुबह उठकर महसूस करती थी तुम और क्या वो रातें भी जब फिर बंद कर लेती थीं तुम खिड़की। - शिवांगी (5 सितंबर 2018)