समलैंगिकता ; विषमलैंगिक पितृसत्तामक समाज से जुड़ाव और अप्राकृतिकता का कारण
गर्मी की एक दोपहर दसवीं में पढ़ने वाला एक लड़का घर की पहली मंजिल पर बने अपने कमरे को बंद किए बैठा है। स्कूल से आकर बस उसने खाना खाया और जा घुसा अपने कमरे में... रुटीन के मुताबिक आधे-पौने घंटे में उसका दोस्त भी आ जाता है। दोनों खेलते हैं, क्योंकि लू भरी दोपहरी में बाहर निकलने की इजाजत दोनों को नहीं। दूसरी ओर, खाना खाकर घर के सब सदस्य पहुंच चुके हैं अपने-अपने बिस्तर पर। लड़के की मां बड़बड़ाने लगती हैं.. 'दोनों लड़के खाना खाकर आराम भी नहीं करते, बस हर वक्त खेलना।' वह अपनी बड़ी बेटी से कहती हैं- 'जरा जा दोनों लड़कों को डपट आ। ' लड़की जाती है.. कमरे में कुछ एकदम नया सा देखकर घबराहट और गुस्से में नीचे भाग आती है। मां को बताती है कि ऊपर दोनों 'गंदा काम' कर रहे हैं, फिक्र से कहती है कि दोनों भाई बिगड़ गए। कमरे में बंद दोनों किशोर अब सहम गए हैं.. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा। लड़के का दोस्त उठकर पहले जीने का दरबाजा लगाता है और खुद छत पर भाग जाता है। अब पहली मंजिल पर खड़ा वह लड़का रो रहा है.. अपनी मम्मी को आवाज दे रहा है कि उसका दोस्त मर न जाए। कह रहा है कि दोस्त