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घड़े सी औरत

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लड़कियां पीटी जाती हैं औरत बनने की प्रक्रिया में। बताया जाता है कि कुम्हार का कच्चे घड़े को ठोंकना जायज है। जब बन जाती हैं औरत, तो पीटी जाती हैं परखने को,  कि खरीदार ठोंक बजाए तो न फूटें। फिर घड़े के माफिक आवाज आदि की जांच कर होता है सौदा। सौदागर ले जाता है घर रसोई में दुबका दी जाती हैं। जरूरत पर लंबी डंडी के वर्तन से निकाल लिया जाता है पानी। अब खुद ही रखना होता है उन्हें अपने टूटने का ख्याल। उन्हें डरना होता है कि कोई फिर पीटकर न फोड़ डाले। अब सौदागर ही होता है उनका कुम्हार। पर हर बार ठुंककर खुद जुड़ जाती हैं अब वे।। - शिवांगी, 18. जून. 2018

माता और मम्मी ...

28 अप्रैल को माता की मौत हो गई। वैसे तो हम सब मौसेरे बहन-भाइयों को माता को नानी कहना चाहिए। पर माता तो जैसे जगत माता थीं। मम्मी-मौसी-मामा ही नहीं, अगली पीढ़ी भी उन्हें यही बुलाने लगी। इतना ही नहीं रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी उन्हें माता कहते। नाना के लिए वह ‘बेबी माता’ थीं। फालिज के कारण बेचारी दो साल तक बिस्तर पर रहीं। जब अंतिम यात्रा के लिए उन्हें तैयार किया जा रहा था तो उनके अकड़े शरीर से कपड़े उतारने के लिए उन्हें सिर के बल उठाया गया। तब पीठ पर जगह-जगह पट्टियों से ढके जख्म देखकर हर कोई सिहर गया। उनके शरीर में पड़ी यूरिन नली निकालने के लिए जब उसे हल्के से मैंने खींचा तो पानी की एक तेज धार निकल पड़ी जो ये शरीर में पैदा हो चुके बैक्टीरिया थे। यह देखना बहुत दर्दनाक था।    74 साल की उम्र में वह चली गईं, नाना की मौत के ठीक आठ साल बाद। ये आठ साल कैसे कटे होंगे, यह उनके चेहरे से पता चलता था। जाहिर है कि जीवनसाथी का जाना किसी घर में एक इंसान के कम हो जाना भर नहीं होता। उसके लिए तो यह बिछोह शायद ज्यादा कठिन होता होगा, जिसने अपना बचपन, जवानी और बुढ़ापा साथ गुजारा हो। 14 साल की उम्र में माता की