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Inspirer || The Devotees

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watch out the Inspirer series two ; the devotees अपना देश छोड़कर अपने सपनों की दुनिया में रहने आए हैं दो रूसी कृष्ण भक्त- सिरिगे और एंटोन। दोनों से की गई बातचीत को सुनना इसलिए भी खास होगा ताकि इन दोनों विदेशी मेहमानों की जुबानी हम और आप अपने देश की अहमियत को समझ सकें।

चिड़िया मां

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अभी खबर मिली किसी ने जनी है बच्ची बन गयी हूँ मां महसूस हो रही है जिम्मेदारी पर असुरक्षा या भार नहीं यह, सतर्कता है कि.. उंगली बराबर उस हथेली को कैसे थामूं और कर लूं दोस्ती। यह भी कि.. चौंधियती आंखों के सामने कैसे होऊं खड़ी साया बनकर। हां वादा भी है कि .. नई दुनिया के लिए अभ्यस्त होते ही हटा लूंगी सब साये उड़ान देखूंगी तुम्हारी चिड़िया मां की तरह।। - शिवांगी , 12 अक्तूबर 2018 (कल एक सहकर्मी के घर बेटी का जन्म हुआ, खबर सुनकर उस बच्ची के लिए यह कविता लिखी। तस्वीर मेट्रो में परसो मिली एक छोटी बच्ची की है, बच्चे के हाथ को थामते ही कितना ज़िम्मेदार महसूस करते हैं हम।)

INSPIRER || PUSPA GUPTA

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Interview by shivangi

समलैंगिकता ; विषमलैंगिक पितृसत्तामक समाज से जुड़ाव और अप्राकृतिकता का कारण

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गर्मी की एक दोपहर दसवीं में पढ़ने वाला एक लड़का घर की पहली मंजिल पर बने अपने कमरे को बंद किए बैठा है। स्कूल से आकर बस उसने खाना खाया और जा घुसा अपने कमरे में... रुटीन के मुताबिक आधे-पौने घंटे में उसका दोस्त भी आ जाता है। दोनों खेलते हैं, क्योंकि लू भरी दोपहरी में बाहर निकलने की इजाजत दोनों को नहीं। दूसरी ओर, खाना खाकर घर के सब सदस्य पहुंच चुके हैं अपने-अपने बिस्तर पर। लड़के की मां बड़बड़ाने लगती हैं.. 'दोनों लड़के खाना खाकर आराम भी नहीं करते, बस हर वक्त खेलना।' वह अपनी बड़ी बेटी से कहती हैं- 'जरा जा दोनों लड़कों को डपट आ। ' लड़की जाती है.. कमरे में कुछ एकदम नया सा देखकर घबराहट और गुस्से में नीचे भाग आती है। मां को बताती है कि ऊपर दोनों 'गंदा काम' कर रहे हैं, फिक्र से कहती है कि दोनों भाई बिगड़ गए।  कमरे में बंद दोनों किशोर अब सहम गए हैं.. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा। लड़के का दोस्त उठकर पहले जीने का दरबाजा लगाता है और खुद छत पर भाग जाता है। अब पहली मंजिल पर खड़ा वह लड़का रो रहा है.. अपनी मम्मी को आवाज दे रहा है कि उसका दोस्त मर न जाए। कह रहा है कि दोस्त

मम्मी का दिल्ली सफर..

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छोटे शहर के लोग अक्सर दिल्ली मरीज की दवाई लेने के वास्ते आते हैं। मेरी मम्मी भी कुछ सात-आठ साल पहले मेरी छोटी बहन की दवाई लेने ही दिल्ली आईं थीं, उसके बाद कभी ऐसा मौका नहीं आया कि वो बच्ची ही दुनिया छोड़ गई। 15 दिन पहले जब मैं घर गई तो उन्होंने जिद की कि वो साथ जाएंगी, हालांकि जल्द ही में डायग्नोज हुई डायबिटीज के कारण उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। हम रात में चले, मम्मी के साथ कई साल बाद मैंने कोई सफर किया, पहले नानी और मौसी के घर मम्मी साथ जाना होता था। खैर, लगभग खाली बस में हम दोनों बैठे, रास्ते में टॉयलेट आना कितनी बड़ी समस्या हो सकती है, यह मुझे उस दिन महसूस हुआ। सो रहे कंडक्टर को जगाकर कहीं गाड़ी रुकवाने के लिए कहना, फिर उसका बड़े अहसान और एक बार गुस्सा होकर भी गाड़ी रुकवाना मुझे बहुत गंदा लगा। दूसरी तरफ इस नेचर कॉल के लिए भी मम्मी को शार्मिदगी का अनुभव हो रहा था कि उनके कारण बार बार बस रोकनी पड़ रही है। उनके ऐसे भाव देखना खुद में बड़ी वर्नेवल फीलिंग थी, एक बार मैं बैठे-बैठे रोने भी लगी, हालांकि तब वह दूसरी सीट पर सो रही थीं। ऐसा मेरे साथ पहली बार जब वो मेरे लिए मम्मी नहीं बल्कि कोई

खिड़की

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कितनी जरुरी है खिड़की तुम्हारे लिए? जानना हो तो चांद को न निहारो जरा टहल आओ नीचे और देखो ... खिड़की के बाहर क्या पड़े हैं सिगरेट के खोखे जिन्हें आधा पीकर ही, तुमने छोड़ दिया था ताकि दिखता रहे उस पर नाम महंगी कंपनी का। खिड़की के बाहर क्या पड़े हैं वो गुब्बारे जिन्हें देखकर तुम पुचकारती थीं अपनी न पैदा हो सकी औलादों को..। यह भी देख आओ क्या वो भाव पड़े हैं ग्लानि के जो सुबह उठकर महसूस करती थी तुम और क्या वो रातें भी जब फिर बंद कर लेती थीं तुम खिड़की। - शिवांगी (5 सितंबर 2018)

मास्टरबेशन से ऑर्गेज्म तक....

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पुरुष सेक्स के लिए प्यार करता है और औरत प्यार के लिए सेक्स करती है - ख़ुशवंत सिंह (किताब -औरतें, सेक्स ,लव और लस्ट) पहली नजर में अमूमन महिलाओं और पुरुषों को यह वाक्य सही लगेगा। पर जवाब यह भी हो सकता है - '' aurat ko pyar ke liye sex karna sikhaya jata hai... Condition kiya jata hai.. kartvya karar diya jata hai... Warna wo sex ke liye sex kare ... Pyar ke liye sex zaruri nahi.. sex kisi se bhi kiya ja sakta hai.. uske liye pyar koi anivarya element nahi. Purush sex ke liye pyar ka swang hi isliye karta hai ki wo aurat ko bandh sake ... Taki wo apni sex ki chah ke liye premi par hi nirbhar rahe.'' फेसबुक के एक ग्रुप में चली चर्चा में यह मेरा जवाब था। आभासी लाइक-कमेंट के बाद इसी विषय पर एक साथी से बात होने लगी। वह बोलीं- यह वाक्य पढ़कर वे भावुक हो गईं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में असहमति जताई, जो अच्छा ही था.. क्योंकि सहमति जतातीं तब शायद हम इस बात पर इतनी बात न करते और नए निष्कर्ष तक न पहुंचते। भारत में लड़कियों को यौन हिंसा के बारे में तो बहुत जानकारी है, क्योंक

जींस वाली लड़कियां

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मैं अच्छी तरह परिचित हूं इनसे.. सरपट दौड़तीं, उससे तेज खिलखिलातीं साड़ी और सलवार सूट देख मुंह बिचकातीं स्कर्ट पहनने की चाह दबाए एक ही रंग की कई जींस खरीद लाती हैं। हिंदुस्तानी मध्यवर्ग जैसी तो हैं। बड़ा बनने की तमन्ना मन में लिए, खुले कपड़ों को बस ताकती रहतीं है। गर्मियों में जींस जब काटती हैं तब बहुत लानत भेजतीं अपनी सनक पर। सुना है मजदूरों का पहनावा थी जींस एक फिल्म में देखा- 'जींस का हक, जीने का हक।' पापा कहते 'सभ्य पहनावा' टांगे नहीं दिखती लड़कियों की। अब देती है घूंघट सी घुटन। ऐसी जींस अब लगती बंधन आसपास अपने जैसियों को  टखने-घुटने से फटी डिजायन वाली जींस पहने देखकर जाने क्यों लगता है डिजायनर बुर्का पहनी हों। - शिवांगी, 11.फरवरी. 2018

महतारी

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मांएं अजीब हैं लक्ष्मी पैदा होने पर  अफसोस करतीं।  आम सी सूरत निखारने को घिटती रहतीं चेहरा। खिसियातीं सोचकर खसम कैसे करेगा इकट्ठा मोटा जहेज। गुस्से में कोसतीं पूछतीं.. क्यों नहीं तू मेरे जितनी चिट्टी? आदमी गुस्से में मारता लल्ली पोंछती आंसू। मां फिर रोतीं सोचतीं.. उसके चले जाने पर कौन बचाएगा मार से। ये भी मनातीं दामाद न हो आदमी जैसा। चौका बासन न करे तो जमातीं बेलन। नौकरी सुन पूछतीं कौन आदमी रखेगा। मोटे जहेज साथ आखिर मिल ही जाता अच्छा लड़का। लल्ली विदा होती मांएं दहाड़े मारकर रोतीं।   कहतीं.. शरीर का हिस्सा कट गया। कोई नहीं समझ पाता उनका रुदन। फिर पति संग जा गंगा नहा आतीं। बोझ उतर जाता मन का। अब पूरे जीवन आदमी और लड़के से नज़र बचा जुटाएंगी रुपया लल्ली की त्योहारी को।। - शिवांगी 17 जुलाई 2018

दोस्ती को दोस्ती रहने दो ...

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मार्केट और मीडिया में दिवसों को इतना बेचा जाता है कि फ्रेंडशिप डे या किसी और डे पर एक-दूसरे को विश करना अब हास्यास्पद लगता है। इसलिए मैंने किसी को विश नहीं किया। पर कुछ घंटे पहले छोटी बहन(प्राची) का कॉल आया, बोली- हैप्पी फ्रेंडशिप डे दीदी। मैंने कहा, हां यार आज फ्रेंडशिप डे है। बोली, 'तुमने एक बार कहा था कि रिश्ते खत्म हो जाते हैं और दोस्ती चलती रहती है, इसलिए मैं तुम्हें विश कर रही हूं।' जाहिर है किसी को भी यह सुनना अच्छा लगता, मुझे भी लगा। पर उसकी कॉल के बाद से बहुत कुछ दिम ाग में चल रहा है। बीते एक साल की ही बात करूं तो मैं आज कह सकती हूं कि हर रिश्ते की परिणति खत्म हो जाना है और दोस्ती वाले रिश्ते भी उस तरह ही खोखले होने के बाद खत्म हो रहे हैं। आज मैं गिनूं तो लंबी फेहरिस्त में सिर्फ दो दोस्त हैं जिन्हें मैं सच में दोस्त कह सकती हूं, जो वाकई निस्वार्थ रहे हैं अब तक। पर यह भी सच है कि मुझे नहीं पता कि अगले साल मैं यह कह पाऊंगी या नहीं। ऐसा क्यों है? ... इस पर अलग-अलग मत हो सकते हैं। कोई कह सकता है मेरा ही व्यवहार अच्छा नहीं या कुछ और भी। मैं आज यह इसलिए लिख रही हूं कि मैं

'छोटा शहर'

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वो आखिरकार उड़ गई.. उसे तो जाना ही था। बदलाव की चाहत, या उकताहट दिखती थी शहर के लिए उसमें। वो शहर से परेशान हुई या सुधारने की कोशिश में सबको, शहर ने उसे परेशान कर दिया?§ यह सवाल आजकल चर्चा में है।। यूं तो सब शहर एक से हैं पर कुंठित जीवन जीते हैं छोटे शहर के लोग। यहां की चुनौतियां अजब हैं लड़कियों के लिए, उनकी शर्त पर नौकरी, पहनना, ओड़ना, बतियाना और सोना, सबकी नियमावली होते हैं छोटे शहर। हरदम कुचलने को तैयार छोटे शहर बड़े शहर जाती लड़कियों के लिए, अचानक आशंकित हो उठते हैं पर वो चली जाती हैं बिना सुनें। शहर में मंथन चलता रहता है,  उनके हर सही को गलत ठहराने का। वो क्यों बताएं...  इन शहरों की बुराइयां ही पैदा करती गईं उसमें संबल जूझने का। तुम्हारे पास जवाब होंगे संबंधों का संसार है छोटा शहर। पर सिर्फ जन्म के साथ मिले संबंधों का। तुम कहोगे.. किसका जिक्र किया? मैं कहूंगी.. बस यही तो है छोटे शहर का एकमात्र सवाल।। - शिवांगी (15, जुलाई, 2016)

घड़े सी औरत

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लड़कियां पीटी जाती हैं औरत बनने की प्रक्रिया में। बताया जाता है कि कुम्हार का कच्चे घड़े को ठोंकना जायज है। जब बन जाती हैं औरत, तो पीटी जाती हैं परखने को,  कि खरीदार ठोंक बजाए तो न फूटें। फिर घड़े के माफिक आवाज आदि की जांच कर होता है सौदा। सौदागर ले जाता है घर रसोई में दुबका दी जाती हैं। जरूरत पर लंबी डंडी के वर्तन से निकाल लिया जाता है पानी। अब खुद ही रखना होता है उन्हें अपने टूटने का ख्याल। उन्हें डरना होता है कि कोई फिर पीटकर न फोड़ डाले। अब सौदागर ही होता है उनका कुम्हार। पर हर बार ठुंककर खुद जुड़ जाती हैं अब वे।। - शिवांगी, 18. जून. 2018

माता और मम्मी ...

28 अप्रैल को माता की मौत हो गई। वैसे तो हम सब मौसेरे बहन-भाइयों को माता को नानी कहना चाहिए। पर माता तो जैसे जगत माता थीं। मम्मी-मौसी-मामा ही नहीं, अगली पीढ़ी भी उन्हें यही बुलाने लगी। इतना ही नहीं रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी उन्हें माता कहते। नाना के लिए वह ‘बेबी माता’ थीं। फालिज के कारण बेचारी दो साल तक बिस्तर पर रहीं। जब अंतिम यात्रा के लिए उन्हें तैयार किया जा रहा था तो उनके अकड़े शरीर से कपड़े उतारने के लिए उन्हें सिर के बल उठाया गया। तब पीठ पर जगह-जगह पट्टियों से ढके जख्म देखकर हर कोई सिहर गया। उनके शरीर में पड़ी यूरिन नली निकालने के लिए जब उसे हल्के से मैंने खींचा तो पानी की एक तेज धार निकल पड़ी जो ये शरीर में पैदा हो चुके बैक्टीरिया थे। यह देखना बहुत दर्दनाक था।    74 साल की उम्र में वह चली गईं, नाना की मौत के ठीक आठ साल बाद। ये आठ साल कैसे कटे होंगे, यह उनके चेहरे से पता चलता था। जाहिर है कि जीवनसाथी का जाना किसी घर में एक इंसान के कम हो जाना भर नहीं होता। उसके लिए तो यह बिछोह शायद ज्यादा कठिन होता होगा, जिसने अपना बचपन, जवानी और बुढ़ापा साथ गुजारा हो। 14 साल की उम्र में माता की

कुछ दिन पहले एक शब्द सुना SHEROSE, शकुंतला बिल्कुल यही लगीं

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लूटपाट नहीं अब खिलाड़िनों के लिए जाना जाता है अंगूरीटांडा

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अंगूरीटांडा को रिपोर्ट करते समय बडी शिद्दत से महसूस हुआ कि आधी अधूरी व्यवस्‍थाएं लड़कियों में सपने तो पैदा कर रही हैं पर साथ ही इन सपनों को जमीन पर लाने के साधन न होने को ये लड़कियां अपनी किस्मत मानकर स्वीकार कर रही हैं। इन आधी अधूरी व्यवस्‍थाओं के कारण हमारा समाज अधपका सा है। जो लोग इस हालात को किस्मत नहीं मानते वे फ्रस्ट्रेशन के शिकार हो जाते हैं। इनमें कोई समाज सुधारक बनता है कोई फिर से पंखिया बन जाता है। - 6 feb 2018