युद्ध चिल्लाने वालों हमें तुम्हारी शुभकानाएं नहीं चाहिए
औरतों आज तुम्हें जब कोई मर्द शुभकामनाएं दे, तो मत लेना ... पलटकर जवाब दे देना कि एक सप्ताह पहले तुम ही थे जो बगैर आधी आबादी की इच्छा जाने ' युद्ध -युद्ध 'चिल्ला रहे थे। तुम कह रहे थे कि मोदी युद्ध करो, बदला लो .. तुम्हारी तरह ही हमारा सीना भी छप्पन इंची है, हम में भी पौरुष भरा है, तुम्हारे सब जवान अगर शहीद भी हो गए तो हम पहुंचेंगे सीमा पर , हमारा हर कतरा भारत मां के लिए होगा। तुम ऐसे अपने जोश में क्या यह सोच रहे थे कि जिन औरतों के हाथ पैर काटकर तुमने उन्हें अपनी मां, लुगाई , बहु - बेटी बनाकर बैठा रखा है घरों में... जो मोहल्ले की दुकान से कपड़े धोने का साबुन लाने के लिए भी अपने लल्ला के पापा का इंतजार करती हैं ... तुम्हारी मौत के बाद क्या होगा उनका ? क्या वो सीख पाएंगी घूंघट हटाकर बेधड़क उन दुकानों पर जा पाना ? क्या राशन खरीदने के लिए उनके पास बचा रहेगा रुपया ? बिना जेबों के कपड़े पहनने वाली ये औरतें क्या कमाना सीख पाएंगी अचानक से ? क्या उन्हें अपने उसी लल्ला की बोतल में चाय भरने के लिए भी खुद को गिरवी नहीं रखना पड़ेगा किसी लाला के पास? या नहीं जाना पड़ेगा किसी बड़े शहर