खाली बोतल
हलचल से हादसों तक, तलहके से सन्नाटों तक। आबादी में पसरी बीरानियां, और खाक में मिली ख्वाहिशें। रोंगटे खड़े कर देती, अपाहिज सी आवाजें दिल में आते उन तमाम खतरनाक ख्यालों के बीच अपनों को पहचानने की कोशिश में ये निगाहें... खोजती हैं.. चौराहे से घर को जाती गली के नुक्कड़ पर खड़े आम के पेड़ को। उस पुरानी शानदार हवेली के फाटक को, जिस पर लटकते, झूला झूलते, खिसियाए उस दरबान के डंडे से भगाने पर, चूरन वाले चाचा की दुकान के मुहाने पर.. घंटों बैठ,,, उन आशाओं के झुरमुट जैसी ऊंची इमारतों को अपना बनाने का ख्वाब कभी देखा था मैंने। आज उन्हीं इमारतों के दरार पड़कर ढह जाने पर, ख्वाब जैसे किरची-किरची खिड़की के टूटे कांच की तरह बिखर से गए हैं। तबाही के और भी निशां हैं आसपास। मगर पैर हैं कि जैसे आगे बढ़ना ही नहीं चाहते। जकड़ से गए हो, जैसे आसपास ही कहीं किसी मृत शरीर से रूबरू होने का डर सता रहा हो।। तभी किसी बिलखते मासूम ने जकड़े पांव में जान से भर दी। अटे-पड़े शव, दबे-कुचले पांव के बीच जिंदगी का एक निशां हिम्मत बंधा गया। मृत मां की गोद में सुरक्षित यह