मेरा इतबार ...
मुझे आज भी दोनों पैर से भागना नहीं आता .... जैसे दूसरे बच्चे भागते थे जी भी ........ जिसमें एक पैर को आगे करके फिर दूसरे पैर को थोड़ा तिरछा करके उसके पीछे रख कर भागते हैं... पता नहीं समझा पा रही हूँ या नहीं .... शायद नहीं । ... अगर ठीक से समझ गयी होती तो भागना आ गया होता और समझा भी पाती । तब रामू चाचा होते थे ..... अब तो सालों से उन्हें नहीं देखा .... इतबार की शाम को हमें पल्ले घर से अपने घर लेने आते .... मम्मी इंतज़ार कर रही होती थीं ना , क्योकि मैं और जी तो शनिवार को स्कूल से ही चले जाते पल्ले घर। वहाँ रात में विलायती बाबू देखते .... फिर बाबा के साथ समाचार भी... । उसका नाम 'प्रादेशिक समाचार' होता था...जिसका मतलब मैंने तब पूरी तरह जाना जब अखबार की 'प्रादेशिक डेस्क' पर काम सीखने का मौका मिल रहा है । खैर .... तो हम समाचार देखते .... फिर रात वाली पिक्चर भी। हम .... मतलब मैं, जी , बुआ , चाचा ... , जी हमेशा अम्मा वाली खटिया पर उनके साथ लेटके देखती .... मैं पता नहीं कहाँ... याद नहीं । लेकिन बुआ रात में पढ़ती थी शायद ....उनके पास एक महरूम रंग (मुझे बीएससी में जाकर पता लगा