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"....अब क्या करें कि किताबों में जी नही लगता!"

''इल्म की 'ताक़त" पहचानतें हैं हम, मगर अब क्या करें कि 'किताबों' में 'जी ' नही लगता! 'नतीजें' बहुत देख लिए कर करके 'बफ़ा' सबसे..., सनम अब 'तुमसें' 'शुब्हों' का ये बादल नही छटता।।" 'शिवांगी जायसवाल'

'नश्तर'

इस आगामी लोकसभा चुनाव में सब कुछ अनोखा है। मग़र 'आईडिया' सिर्फ हमारे पास हैं।'वेदी' नें 'मोदी उपायों' की प्रशांसा यूँ थोड़े ही की...।;-)भगवा रंग में रंगे 'विकास पुरुष' हैं, तो मनमोहन के प्रिय, ..'नमों' से नाम प्राप्त 'शहजादे' हैं। प्रचारे ज़ंग में एक के पास 'प्रधानमंत्री प्रत्याशी' और 'पी एम इन वेटिंग' भी है ,तो दूसरे के पास 'सिर्फ माँ' है..। ऐसे में भगवा का 'ये रख तेरा पी एम कन्डीडेट' और अब खेलतें हैं 'पी एम-पी एम'... अभी तलक़ अनोखा नज़र आता था...।मगर ये क्या.. 'मफलर' को 'बुलटप्रूफ रक्षाकवच' की तरह हर दम पहनें ये टोपीनुमां 'केजरीवाल' इस 'पी एम-पी एम' खेल में कैसे शामिल हो सकता है! पी एम कन्डिडेट हम 'बांट' रहें हैं, ये हमारी अभी२ जन्मी प्रथा पर 'झाडू' कैसे लगा सकता है?..ठीक है ये 'झाडू लगाएगा' तो हम 'टोपी' पहनेंगे, और क्या कहा... 'शहज़ादे' तो पहले ही इस 'झाडू विधा' से 'सीखनें' को बोल चुकें हैं! देखो हम पहलें

'नश्तर..'

सैफई में हमनें 'कुछ करोड़' खर्च क्या कर लिए ...मियाँ आप लोगों नें तो 'बवाल' ही मचा दिया। 'मुजफ्फर नगर ' न हो गया,'गले की हड्डी' हो गई..हम चुप रहें तो परेशानी कुछ बोल दें तो 'संवेदनहीनता'! अब कोई मुझे बता दें हमसे दंगें भड़क गए तो क्या ..राहत शिविर भी तो हमारी जेब से ही चल रहा है। अमां..मिया 'जो आया है उसे कभी तो जाना ही है ' न..।किसी को राहत शिविरों सें तो किसी को महलों से..। क्या 'गुस्ताखी' हो गई जो ये सच कह दिया हमारे एक नेता नें। राहत शिविर उखाड़नें का कारण भी 'गीता के इसी उपदेश' से लिया है हमनें। बैसे नेता से याद आया 'ड़ेढ़ ईश्कियां' के प्रीमियर शो पर न जानें का कारण 'मीडिया का हो हल्ला' नहीं हमारे 'नेता जी ' थे।बो क्या है न ..माधुरी जी का चंद्रमुखी और नसीरुद्दीन के तमाम किरदार 'समाजबाद' का ही एक 'चेहरा' हैं न ..और क्या है न हमारे 'नेताजी' नसीर साहब के बड़े फैन हैं..।...और मैं भी बस उन्हीं के लिए फिल्म देखनें की इच्छा रखता था:-P;-)। बस इसी 'पहले मैं-पहले मैं'

"...ये जंग मैं लड़ता रहूँगा''

"...ये जंग मैं लड़ता रहूँगा!" इस देश में प्रेम के दुश्मन भले हो लोग, मगर कानून है इक चीज जो इंसाफ करती है। भले अब अपनों की नज़रो में हम,'शर्मिदगी' की चीज़ हो.. मगर वो पटटी नज़रो पर वांधे 'इंसाफ की देवी' , हमें तो आजभी अपनी ही 'पहरेदार' लगती है।। ऐ !इंसाफ की देवी तुझी से आस थी अंतिम, तो फिर क्यों नही सोचा तुनें ये फैसला करते... कि ग़र 'गुनाह' के दर्जे में रखा ये प्यार जाएगा, तो इस प्यार से जुड़ा जो अस्तित्व है मेरा.. उसकाभी तो खुद ही 'कत्लेआम' हो जाएगा!! 'समलैगिंकता' में भी वही 'आलौकिकता' है प्यार की। इस प्यार मेंभी 'दो जिस्म और इक जां' सा ही ज़ज्वा है, इस प्यार में भी साथ जीनें मरनें की ही कसमें हैं। इस प्यार में भी सपनें,है साथ का एहसास भी, इस प्यार से ही खुशिया मेरी,है मेरा ये संसार ही। फिर क्यों अलग छितरा हुआ सा कर दिया तुनें हमें, बांध धाराओ की गिरह में ,क्यो अपराध घोषित कर दिया तूनें इसे...।। मैं 'मुखालफत' करता हूँ तेरे इस 'बेतुके आदेश' की! आखिरी सांस तक लड़ता रहूगाँ, 'समलैं